नाटक-एकाँकी >> चार यारों की यार चार यारों की यारसुशील कुमार सिंह
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स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के कई पहलुओं को अंकित करता नाटक...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रसिद्ध नाटककार सुशील कुमार सिंह ने जहाँ स्पष्ट रूप से राजनैतिक नाटक
रचे हैं, वहीं सामाजिक स्थितियों को भी बड़े साहस के साथ अपने नाटकों में
उकेरा है। उनका चर्चित और बोल्ड नाटक ‘चार यारों की
यार’ मुख्य पात्र बिन्दिया की त्रासदी के गिर्द बुना गया है।
बिन्दिया की कहानी इस देश की अनेकानेक औरतों की व्यथा-कथा है :
‘‘दोष मैं किसे दूँ, सब भाग्य का ही खेल है। यदि मैं अपने पहले पति को छोड़ कर दूसरा ब्याह न रचाती... चौंकिए मत, कोई नयी बात नहीं कह रही हूँ... दूसरा ब्याह करना कोई गुनाह तो नहीं है और वह भी तब जबकि किसी स्त्री का पति हर रोज़ नशे में धुत्त हो कर लौटे और अपनी पत्नी को बेज़ुबान जानवर समझ बेरहमी से पीटना शुरू कर दे... लात, घूँसे, थप्पड़ या जो कुछ भी हाथ में आ जाये-जलती हुई लकड़ी, जूते या लोहे की रॉड... कब तक सहती-आखिर कब तक... ’’
लेकिन दूसरे ब्याह से भी बिन्दिया को वह सुख-चैन नहीं मिलता जिसकी वह उम्मीद लगाये बैठी थी। यहीं से बिन्दिया की भटकन की कहानी शुरू होती है और उसका अन्त उसी के हाथों दूसरे पति की हत्या में होता है। इस व्यथा-कथा को सुशील कुमार सिंह ने बड़ी बेबाकी और हमदर्दी के साथ नाटक में अंकित किया है।
‘‘दोष मैं किसे दूँ, सब भाग्य का ही खेल है। यदि मैं अपने पहले पति को छोड़ कर दूसरा ब्याह न रचाती... चौंकिए मत, कोई नयी बात नहीं कह रही हूँ... दूसरा ब्याह करना कोई गुनाह तो नहीं है और वह भी तब जबकि किसी स्त्री का पति हर रोज़ नशे में धुत्त हो कर लौटे और अपनी पत्नी को बेज़ुबान जानवर समझ बेरहमी से पीटना शुरू कर दे... लात, घूँसे, थप्पड़ या जो कुछ भी हाथ में आ जाये-जलती हुई लकड़ी, जूते या लोहे की रॉड... कब तक सहती-आखिर कब तक... ’’
लेकिन दूसरे ब्याह से भी बिन्दिया को वह सुख-चैन नहीं मिलता जिसकी वह उम्मीद लगाये बैठी थी। यहीं से बिन्दिया की भटकन की कहानी शुरू होती है और उसका अन्त उसी के हाथों दूसरे पति की हत्या में होता है। इस व्यथा-कथा को सुशील कुमार सिंह ने बड़ी बेबाकी और हमदर्दी के साथ नाटक में अंकित किया है।
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